Monday, July 3, 2017

राष्ट्रगान

जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य-विधाता,
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा 
द्राविधु -उत्कल-बन्ग
विन्ध्य-हिमाचल-यमुना-गन्गा
उच्छल-जलधि-तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष मांगे,
गाहे तव जय-गाथा
जन-गण-मन-मंगलदायक जय हे
भारत-भाग्य-विधता
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे.

ॐ असतो मा सद् गमय।

ॐ असतो मा सद् गमय। 
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं  गमय। 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। 

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं 
पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय 
पूर्णमेवावशिष्यते । 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।। 

देवी मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ रूपेण संस्थिता 
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति  रूपेण संस्थिता 
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि  रूपेण संस्थिता 
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी  रूपेण संस्थिता 
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।। 

महामृत्युजंय मंत्र

 त्रयम्बकं यजामहे | 
सुगन्धिं  पुष्टि वर्द्धनम || 
उर्वारुकमिव बंधनान |  
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात || 
   

विष्णु मंत्र

त्वमेव माता ,च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धु ,च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या, च द्रविडम त्वमेव
त्वमेव सर्वम मम्देवदेवा  ॥

॥ कबीर के दोह ॥

दुख म सुमिरन सब करे , सुख मे करे न कोय ।
जो सुख मे सुमिरन करे , दुख कहे को होय ॥ 1 ॥


साईं इतना दीजिये , जा मे कुटुम समाय ।
मैं  भी भूखा न रहूँ , साधु न भूखा जाय ॥ २  ॥




Monday, March 13, 2017

दया कर दान भक्ति का

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।

हमारे ध्यान में आओ ,प्रभु आँखों में बस जाओ
अन्धेरे दिल में आकर के ,परम ज्योति जगा देना

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।

बहा दो प्रेम की गंगा ,दिलो में प्रेम का सागर
हमें आपस में मिलजुलकर, प्रभु रहना सीखा देना।

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।

हमारा कर्म हो सेवा ,हमारा धर्म हो सेवा
सदा इमान  हो सेवा व सेवक चर बना देना।

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।

वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना
वतन पे जान फ़िदा करना ,प्रभु हमको सिखा  देना।

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना। 

Saturday, March 11, 2017

राष्ट्रीय गीत




यदि [[बाँग्ला]] भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक "बन्दे मातरम्" होना चाहिये "वन्दे मातरम्" नहीं। चूँकि [[हिन्दी]] व [[संस्कृत]] भाषा में 'वन्दे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में '''व''' अक्षर है ही नहीं अत: '''बन्दे मातरम्''' शीर्षक से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत में 'बन्दे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है तथा "वन्दे मातरम्" उच्चारण करने से "माता की वन्दना करता हूँ" ऐसा अर्थ निकलता है, अतः [[देवनागरी]] लिपि में इसे [[वन्दे मातरम्]] ही लिखना व पढ़ना समीचीन होगा।


== गीत ==


बंकिम चंद्र चटर्जी

वन्दे मातरम्।
सुजलाम् सुफलाम् मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। १।।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। २।।

कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम्।। ३।।

तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वम् हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम्। । ४।।

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलाम् अमलाम् अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम्।। ५।।

श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम् भूषिताम्,
धरणीम् भरणीम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। ६।।


('''बाँग्ला मूल गीत''')

সুজলাং সুফলাং মলয়জশীতলাম্
শস্যশ্যামলাং মাতরম্॥
শুভ্রজ্যোত্স্না পুলকিতযামিনীম্
পুল্লকুসুমিত দ্রুমদলশোভিনীম্
সুহাসিনীং সুমধুর ভাষিণীম্
সুখদাং বরদাং মাতরম্॥

কোটি কোটি কণ্ঠ কলকলনিনাদ করালে
কোটি কোটি ভুজৈর্ধৃতখরকরবালে
কে বলে মা তুমি অবলে
বহুবলধারিণীং নমামি তারিণীম্
রিপুদলবারিণীং মাতরম্॥

তুমি বিদ্যা তুমি ধর্ম, তুমি হৃদি তুমি মর্ম
ত্বং হি প্রাণ শরীরে
বাহুতে তুমি মা শক্তি
হৃদয়ে তুমি মা ভক্তি
তোমারৈ প্রতিমা গড়ি মন্দিরে মন্দিরে॥
ত্বং হি দুর্গা দশপ্রহরণধারিণী
কমলা কমলদল বিহারিণী
বাণী বিদ্যাদায়িনী ত্বাম্
নমামি কমলাং অমলাং অতুলাম্
সুজলাং সুফলাং মাতরম্॥

শ্যামলাং সরলাং সুস্মিতাং ভূষিতাম্
ধরণীং ভরণীং মাতরম্॥


=== हिन्दी अनुवाद ===

मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
कटाई की फसलों के साथ गहरी,
माता!


उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
हँसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।

Friday, March 3, 2017

खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

सिंघासन हिल उठे , राजवंशो ने भृकुटि तानी थी

Author-सुभद्रा कुमारी चौहान 

बूढ़े भारत में भी आयी, फिर से नई जवानी थी 
गुमी हुई आज़ादी की, कीमत  सबने पहचानी थी 
दूर फिरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी 
चमक उठी  सन  सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी 

कानपुर के नाना की ,मुँह बोली बहन छबीली थी          
लक्ष्मीबाई नाम पिता की, वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी 
बरछी ढाल  कृपाण कटारी, उसकी यही सहेली थी
वीर शिवजी की गाथाये, उसको याद  जबानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी 

लक्ष्मी  थी या दुर्गा थी,  वह स्वयं वीरता की अवतार 
देख मराठे पुलकित होते, उसके तलवारो के वार  
नकली युद्ध व्यूह की रचना, और खेलना खूब शिकार 
सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवाड़ 
महाराष्ट्र कुल देवी उसकी, भी आराध्य भवानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी 

हुई वीरता की  वैभव के साथ सगाई झांसी में 
ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झांसी में 
राजमहल  में  बजी बधाई, खुशिया छायी झांसी में 
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि  सी बह आयी झांसी में 
चित्रा  ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी 

उदित हुवा सौभाग्य, मुदित महलो में उजियाली छायी 
किन्तु कालगति  चुपके - चुपके काली घटा घेर लायी 
तीर  चलाने  वाले कर में, उसे चुडिया कब भायीं 
रानी विधवा हुई हाय, विधि को भी नहीं  दया  आयी 
निःसंतान मरे राजा जी, रानी शोकसमानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी 

बुझा दीप झांसी का तब, डलहौजी मन में हर्षाया 
राज्य हड़प करने का उसने, यह अच्छा अवसर पाया 
फौरन फौजे भेज, दुर्ग पर अपना झंडा फहराया 
लावारिस का वारिस बनकर, ब्रिटिश  राज्य झांसी आया 
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा, झांसी हुई वीरानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी 

अनुनय विनय नहीं सुनता हैं , विकट  फिरंगी की माया 
व्यापारी बन दया चाहता था, जब यह भारत आया 
डलहौजी ने पैर पसारे, अब तो पलट गयी काया 
राजाओ नबब्बो को भी, उसने पैरों ठुकराया 
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी 
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

इनकी गाथा छोड़ चले हम,  झांसी के मैदानों में 
जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई, मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेण्ट बॉकर आ पहुँचा ,आगे बढ़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली ,हुआ दून्दू असमानों में
जख्मी होकर बॉकर भागा ,उसे अजब हैरानी थी
 बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी बढ़ी कालपी आयी ,कर सौ मील निरन्तर पार
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल  सिधार
यमुना तट पर अंग्रेज़ो ने ,फिर खायी रानी से हर
विजयी रानी आगे चल दी ,किया ग्वालियर पर अधिकार
अंग्रेजो के मित्र सिंधिया, ने छोड़ी रजधानी  थी
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

विजय मिली पर अंग्रेजो के फिर सेना घिर आयी थी
अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था उसने मुँह  की खायी थी
काना और मंदरा सखिया , रानी के संग आयी थी
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने , भारी मार मचायी थी
पर पीछे ह्यूरोज आ गया ,हाय घिरी अब रानी थी
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

तो भी रानी मारकाटकर ,चलती बनी सैन्य के पार
 किन्तु सामने नाला आया ,था यह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था इतने में आ गये सवार
रानी एक शत्रु बहुतेरे ,होने लगे वार पर वार
घायल होकर गिरी सिंहनी ,उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

रानी गयी सिधार ,चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी
मिला तेज से तेज ,तेज की वह सच्ची अधिकारी थी
अभी उम्र कुल तेइस की थी , मनुष्य नहीं अवतारी थी
हमको जीवित करने आयी , बन स्वतंत्रता नारी थी
दिखा गयी पथ , सीखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी

जाओ रानी याद रखेंगे ,हम कृतज्ञ भारत वासी
यह तेरा बलिदान , जगायेगा स्वतंत्रता अविनाशी
होये चुप इतिहास ,लगे सच्चाई को चाहे फाँसी
हो मदमाती विजय मिटा दे ,गोलों से चाहे झांसी
तेरा स्मारक तू ही होगी ,तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हर बोलो के मुख, हमने सुनी कहानी थी 
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी  


ॐ सह नाववतु।

ॐ सह नाववतु। 
सह नौ भुनक्तु। 
सह वीर्य करवावहै। 
तेजस्वि नावधीतमस्तु 
मा विद्विषावहै। 
ॐ शान्तिः  शान्तिः शान्तिः।। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः 
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु 
मा कश्चिद  दुःख भाग्भवेत। 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। 


इतनी शक्ति हमें देना दाता

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,
मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चले नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हो ना। 

दूर अज्ञान के हो अंधेरे ,
तू हमें ज्ञान की रोशनी दे। 
हर बुराई से बचते रहे हम ,
जितनी भी दे भली जिंदगी दे। 
बैर हो ना  किसी का किसी से ,
भावना मन में बदले की हो ना। 

 इतनी शक्ति हमें देना दाता ,
 मन का विश्वास कमजोर हो ना। 
हम चले नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हो ना। 

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो।

तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे
कोई ना अपना सिवा तुम्हारे।
तुम्ही हो नैय्या तुम्ही खेवैय्या
तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो.....

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो।

जो खिल सके ना वो फूल हम है
 तुम्हारे चरणों की धूल हम है।
दया की द्रष्टि सदा हि  रखना
तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो.....

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो। .   

Thursday, March 2, 2017

हे शारदे माँ , हे शारदे माँ


     हे शारदे माँ , हे शारदे माँ
    अज्ञानता से हमें तार दे माँ

 तू स्वर की देवी है संगीत तुझसे ,
 हर शब्द तेरा है हर गीत तुझसे।
    हम है अकेले हम है अधूरे ,
  तेरी शरण में हमें प्यार दे माँ ।।
    हे शारदे माँ , हे शारदे माँ.......

मुनियों ने समझी गुनियों ने जानी,
 वेदों की भाषा पुराणों की बानी।
हम भी तो समझें हम भी तो जाने
विद्या का हमको भी अधिकार दे माँ।
    हे शारदे माँ , हे शारदे माँ........ 

तू श्वेतवरणी कमल पे विराजे ,
हाथों में विणा मुकुट सर पे साजे।
अज्ञानता के मिटा दे अंधेरे ,
उजालो का हमको संसार दे माँ
    हे शारदे माँ , हे शारदे माँ

नर हो न निराश करो मन को


Author- मैथलीशरण गुप्त

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो ,कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर  हो, न  निराश करो मन को।
                                                             
संभालो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
 नर  हो ,न  निराश करो मन को।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ
फिर जा सकता है सत्व कहाँ
तुम स्वत्व  सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर  हो न  निराश करो मन को।

Tuesday, February 7, 2017

बुढ़ापा


पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है ।  

  
निंदा की नीव बुढ़ापा है,
जीवन संताप बुढ़ापा है,
संस्तृत का पाप बुढ़ापा है,
पुरिखन की आस बुढ़ापा है,
देखतै तन थर थर कापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

बचपन मा कनिया चढ्यो खूब
मनमानी बातें गड्यो खूब,
घी दूध खाये कै बढ्यो खूब,
खेल्यो कूद्यो औ चल्यो खूब,
अब सोचि रह्यो का पापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

बीते कछू दिवस जवान भयो,
विद्धान गुनी धनवान भयो,
बल पौरुख तेज निधान भयो,
सुन्दर स्वरूप रसवान भयो,
सब घुसरि गयो सुघराया है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

Monday, February 6, 2017

ऑंसू


Author-जयशंकर प्रसाद

इस करुणा कलित हृदय में
अब विकल रागिनी बजती
क्यों हाहाकार स्वरों में
वेदना असीम गरजती?

मानस सागर के तट पर
क्यों लोल लहर की घातें
कल कल ध्वनि से हैं कहती
कुछ विस्मृत बीती बातें?

आती हैं शून्य क्षितिज से
क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी
टकराती बिलखाती-सी
पगली-सी देती फेरी?

क्यों व्यथित व्योम गंगा-सी
छिटका कर दोनों छोरें
चेतना तरंगिनी मेरी
लेती हैं मृदल हिलोरें?

बस गयी एक बस्ती हैं
स्मृतियों की इसी हृदय में
नक्षत्र लोक फैला है
जैसे इस नील निलय में।

ये सब स्फुलिंग हैं मेरी
इस ज्वालामयी जलन के
कुछ शेष चिह्न हैं केवल
मेरे उस महा मिलन के।

शीतल ज्वाला जलती हैं
ईधन होता दृग जल का
यह व्यर्थ साँस चल-चल कर
करती हैं काम अनिल का।

बाड़व ज्वाला सोती थी
इस प्रणय सिन्धु के तल में
प्यासी मछली-सी आँखें
थी विकल रूप के जल में।




बुलबुले सिन्धु के फूटे
नक्षत्र मालिका टूटी
नभ मुक्त कुन्तला धरणी
दिखलाई देती लूटी।

छिल-छिल कर छाले फोड़े
मल-मल कर मृदुल चरण से
धुल-धुल कर बह रह जाते
आँसू करुणा के कण से।

इस विकल वेदना को ले
किसने सुख को ललकारा
वह एक अबोध अकिंचन
बेसुध चैतन्य हमारा।

अभिलाषाओं की करवट
फिर सुप्त व्यथा का जगना
सुख का सपना हो जाना
भींगी पलकों का लगना।

इस हृदय कमल का घिरना
अलि अलकों की उलझन में
आँसू मरन्द का गिरना
मिलना निश्वास पवन में।

Sunday, February 5, 2017

लाठी के गुण

लाठी में हैं गुण बहुत, सदा राखिये संग,
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग,
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे,
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै,
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी,
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।

By :- गिरिधर कविराय

अनपढ़ मंत्री

कैसे कोई कहि सकै बड़े- बड़ेन की भूल,
संसद माँ उई पहुँचिगे जी न गये स्कूल,
जी न गये स्कूल तबो  बनि  बैढ़े मंत्री,
मिलि गयी उनको कार साथ मा दुई -दुई संत्री,
कहते जी. डी. सिंह देश मा अब का होई,
बड़े -बड़ेन की बात कहये अब  कैसे कोई।

By :- जी. डी. सिंह

धैर्य

तुम उतना आगे बढ़ो जितनी शक्ती होय,
बहकावे मा आइ कै दिह्यो न धीरज खोय,
दिह्यो न धीरज खोय चाल तुम अपनी चलना,
किह्यो सदा उपकार पैर पीछे नहि धरना,
कहते जी.डी.सिंह खर्च हो चाहे जितना,
मन मा लीन्हो ठानि काम तुम कीन्हो उतना।

By :- जी. डी. सिंह

बुरे की संगत

जाकी न धरती हरी ताहि न लीजै संग,
जो संग राखे ही बनै तौ करि राखु अपंग,
तौ करि राखु अपंग संग कबहूँ नहि लीजै,
सौ सौगंधै खाय चित्त मा याक न दीजै,
कह गिरधर कविराय खुटुक जइ है नहि ताकी,
कोटि दिलासा देय हरी घन धरती जाकी।

By :- गिरधर कविराय

सच्चे और बुरे की परख

रहिये लटपट काटि दिन अरु घामे मा सोय,
छांह नवाकी बैठिये जो तरु पतरो  होय,
जो तरु पतरो होय  एक दिन धोखा दइहै,
जा दिन चलै बयारि उलटि वह जर ते जइहै,
कह गिरधर कविराय छांह मोटे की गहिये,
पत्ता सब झारि जाय तबौ छाया मा रहिये।

By :- गिरधर कविराय



                                                            

Friday, February 3, 2017

गुटका

वाह चौधरी वार्डर हंटर पान पराग,
केसर मधु कुमार अरु शपथ संग दिलबाग,
शपथ संग दिलबाग वर्ड कप लेहु निहारी,
सरमावा डाइमंड सचिन से जो रूचि कारी,
कहते जी. डी.सिंह हरि ओइम अरु बोले शहंशाह,
तुलसी गुटका लखत ही मुख सेनि निकला वाह।

By :- जी. डी. सिंह


विजय दशमी

कहलायो जन मातु ने गमन कीन वन राम,
सिया हरण कइ लइ गयो रावण अपने धाम,
रावण अपने धाम पाई  सुधि कीन चढ़ाई,
मच्यो घोर संग्राम लंक मा धूरि उड़ाई,
कहते जी. डी.सिंह मारि जब रावण पायो,
क्वार मास शुभ दिवश विजय दशमी कहलायो।


By :- जी. डी. सिंह

मधुर वचन

मधुर वचन तुम बोलि कै सब का लेहु रिझाय,
कटुक वचन ते आपकी इज्जत जाय न साय,
इज्जत जाय न साय वचन कडुवे मत कहना,
सब से राखो प्रेम साथ सब ही की रहना,
कहते जी. डी.सिंह बात सब पूरी करना,
भरौ  दलित को अंक बोलि कै मधुरे वचना।

By :- जी. डी. सिंह

बेटियों का ब्याह

बाबूजी है दइ रहे सब का याक सलाह,
बीस बरस के बाद ही बिटिया क करना ब्याह,
बिटिया करना ब्याह तभी वह सुख से रहि है,
रहै सभी दुःख दूरि काम सब सुन्दर होइ है,
कहते जी. डी.सिंह देह पर रखना काबू,
मानो  इनकी बात बतावें जैसी बाबु।

By :- जी. डी. सिंह

  

दिनचर्या


घर बाहर का साफ कै ताजा जलु भरि लाव,
हाथ धोय मुँह साफ कै तव तुम जाय नहाव,
तव तुम जाय नहाव बदन मा फुर्ती लाओ,
दूध दही के साथ हरी सब्जी भी  खाओ,
कहते जी.डी.सिंह काम सब करना मिल कर,
चाहे घर मा रहौ चाहे रहौ घर के बाहर।
 

By :- जी. डी. सिंह

छोटे लरिका

छोटे लरिकन के सुनो टीका लेहु लगवाय,
पर्स पोलियो आदि का सब खतरा मिटि जाय,
सब खतरा मिटि जाय नमक आयोडीन खाओ,
गर्भवती महिलन की जाकर जाँच कराओ,
कहते जी. डी.सिह पड़ै चाहे जितनी अरचन,
रह्यो सदा तैयार ध्यान रखो छोटे लरिकन।

By :- जी. डी. सिंह



राजनीतिक कुर्सी का लालच


हमका कुर्सी चाहिए ऊँचि होय चाहे नीचि,
जउनी विधि ते यह मिलै लावहु वहि का खीचि,
लावहु वहि का खीचि बैठी हम वहि पर पाई,
जउन मिलै अनुदान चाटि हम वहि का जाई,
कहते जी. डी.सिंह मोर मन तबहें हुलसी,
जनता भार मा जाय चाहिए हम का कुर्सी।

By :- जी. डी. सिंह

ग्राम प्रधान


परधानी के  मिलत ही पहिल कामु हम कीन,
कोटा शक्कर तेल का भेजि टड़ैचै दीन,
भेजि टड़ैचै दीन बादि मा महल बनायेन,
लीन्हेन भूमि खरीद अउर ट्रैक्टर लइ आयन,
कहते जी. डी. सिंह कीन्ह कसिकै मनमानी,
हस्ती लीन बनाय मिली जब से परधानी।

By :- जी. डी. सिंह

कलयुग की नवदुर्गा

नवदुर्गा पैदा भई कलजुग के दरम्यान,
ललिता-माया-रावड़ी- ममता-उमा-बखान,
ममता उमा बखान साथ मा शीला-सोनिया,
फूलन अउर स्वराज जानि गइ जिन को दुनिया,
कहते जी.डी.सिंह चाहिए इनको मुरगा,
कलयुग माँ भइ प्रकट हाय ऐसी नवदुर्गा ।

By :- जी. डी. सिंह

    

नेताओं का राज

कुरता पैजामा पहिर बनिगे नेता आज,
दूसरेन की सम्पत्ति पर झपटै जैसे बाज,
झपटै जैसे बाज नोचि नंगा कइ डारै,
वहिका डारै चूसि साथ मा शेखी झारै,
कहते जी.डी.सिंह गाँठि मा एकु न दामा,
लेकिन उनका झलकि रहा कुरता पैजामा ।

By :- जी. डी. सिंह


Saturday, January 28, 2017

पान मसाला

जो तुम्हरे लागै तलब हमका लह्यो पुकार,
हमते जो परहेज हो तो लेलो श्याम बहार,
लेलो श्याम बहार आपकी पावर लाना,
रजनी गंधा हरसिंगार अरु लीडर खाना,
कहते जी.डी सिंह चलौ राजा दरबारे,
है संजोगकि बात राज श्री साथ तुम्हरे ।

By :- जी. डी. सिंह

पानी के गुन

पानी मा गुन बहुत है बसै तुम्हरे अंग,
कहूं शांति है बैठि है कहूं दिखावै रंग,
कहूं दिखावै रंग कहीं पर पानी भरना,
कहीं पर जाये उतर कहीं पर पानी चढ़ना,
कहते जी. डी. सिंह इहै महिमा लासानी,
जो तुम इज्जत चाहौ आँखि मा राखो पानी ।


By :- जी. डी. सिंह

समय का महत्व

केतनी वर का होति है जान न पावा कोय,
सब जन यह कहतै फिरै होनी होय सो होय,
होनी होय सो होय कहबु यह सत्य तुम्हरा,
पर कर्तव्य क ध्यान रख्यो जो सब से न्यारा,
कहते जी.डी .सिंह काम मा रहेना चरफर,
न जानी यह मौत आइ जाये केतने वर।

By :- जी. डी. सिंह

कलयुग

भइया ई संसार माँ अपना सगा न कोय,
जिन पर तुम फूलति फिरौ दगा करै गे सोय,
दगा करेंगे सोय बाधि तुम का लइ जइ है,
देहिं आगि माँ फूकि रहम तनकौ ना लइ है,
कहते जी.डी.सिंह भजौ सब अम्बे मइया,
होइ जाव भव से पार बिना नइया के मइया ।  

By :- जी. डी. सिंह   

नीच की नीचता


नीच न छोड़ै नीचता केतनउ करौ उपाय,
दूध पिलाओ सांप का विष ही बढ़ता जाय,
विष ही बढ़ता जाय चले वह एकदम उल्टा,
जैसे घर का नासि करै वह नारी कुल्टा,
कहते जी. डी.  सिंह उधर से लेना आँखे मीच,
घर बाहर अरु राह माँ जो मिल जाय नीच।

By :- जी. डी. सिंह

  

नेता

कहलावै नेता वही मिथ्या करै प्रचार,
बदले रंग गिरगिट तरह दिन मा सौ-सौ बार,
दिन मा सौ-सौ बार आवादा सब से करते,
पड़ जाये यदि काम नहीं वह ढूढे मिलते,
कहते जी.डी.सिंह जौनु सब का भरमावे,
जेहिं मा ई गुन होय वहै  नेता कहलावे ।

By :- जी. डी. सिंह

मन की बात


अपने मन के दुख को कहूं न कहना रोय
सुनि कै खुश सब होइगे मदद न करि है कोय
मदद न करि है कोय हँसी सब तोरि उड़ै है
करि है महा  प्रचार जहाँ तक वह चलि जै है
कहते जी.डी.  सिंह व्यथा जो होवे तन की
सब बाधा कटि जाय कहयो तब अपने मन की

By :- जी. डी. सिंह

आरक्षण

पढ़ना लिखना चढ़ि गयो आरक्षण  की भेट,
लरिका सब बेकार में खली होइगै टेंट,
खली होइगै टेंट न कोई पूछन हारा,
भटके भटके फ़िरौ मिलै नहि कहू किनारा,
कहते जी. डी.  सिंह चूर में  सारे सपना,
भइया जोतो खेत व्यर्थ मा पड़ना लिखना ।

By :- जी. डी. सिंह

माता जी

माता  जी की कृपा से कटते कष्ट अनेक,
ऊँच नीच नहि मानती जिन का रास्ता नेक,
जिन का रास्ता नेक कभी वह नहि दुःख पावें,
कोई मुसीबत पड़े तासु से मातु बचावे,
कहते जी.डी.सिंह बात सबके हित  की,
बाल न बाका होय कृपा जिस पर माते की।

By :- जी. डी. सिंह

बक्शी का तालाब


बी ०के ०टी के ब्लाक मा कठवारा एक ग्राम,
मातु चंद्रिके का जहाँ सुन्दर धाम ललाम,
सुन्दर धाम ललाम आदि गंगाजल बहती,
माता जी की कृपा सदा सबके संग रहती
देखा जी.डी.सिंह ने  रैन बसेरा हाल,
कुण्ड सुघन्वा है जहाँ ऐसा बक्शीताल ।

By :- जी. डी. सिंह

     

पन्ना दाई

Author-सत्य नारायण गोयंक

चल पड़ा दुष्ट बनवीर क्रूर, जैसे कलयुग का कंस चला
राणा सांगा के, कुम्भा के, कुल को करने निर्वश चला

उस ओर महल में पन्ना के कानों में ऐसी भनक पड़ी
वह भीत मृगी सी सिहर उठी, क्या करे नहीं कुछ समझ पड़ी

तत्क्षण मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले घन पर
स्वामी के हित में बलि दूंगी, अपने प्राणों से भी बढ़ कर

धन्ना नाई की कुंडी में, झटपट राणा को सुला दिया
ऊपर झूठे पत्तल रख कर, यों छिपा महल से पार किया

फिर अपने नन्हें­मुन्ने को, झट गुदड़ी में से उठा लिया
राजसी वसन­भूषण पहना, फौरन पलंग पर लिटा दिया

इतने में ही सुन पड़ी गरज, है उदय कहां, युवराज कहां
शोणित प्यासी तलवार लिये, देखा कातिल था खड़ा वहां

पन्ना सहमी, दिल झिझक उठा, फिर मन को कर पत्थर कठोर
सोया प्राणों­का­प्राण जहां, दिखला दी उंगली उसी ओर

हम को मन की शक्ति देना



हम को मन की शक्ति देना,  
मन विजय करें,
दूसरों की जय से पहले,
खुद की जय करें,
हम को मन की शक्ति देना ...

भेद भाव अपने दिल से,
साफ़ कर सकें, 
दूसरों से भूल हो तो, 
माफ़ कर सकें, 
झूठ से बचे रहें, 
सच का दम भरें, 

Author:- गुलज़ार 

दूसरों की जय से पहले, 
खुद की जय करें 
हम को मन की शक्ति देना ... 

मुश्किलें पड़ें तो हम पे,
 इतना कर्म कर, 
साथ दें तो धर्म का, 
चलें तो धर्म पर
खुद पे हौसला रहे, 
सचका दम भरें, 
दूसरों की जय से पहले, 
खुद की जय करें, 
 हम को मन की शक्ति देना ... 


Thursday, January 26, 2017

तिरंगा

भारत की संस्कृति का संगम ।
तीन रंग  का अपना परचम ।

केसरिया कश्मीर की घाटी
की सोंधी सी रंगत लेकर ।
वीर बहादुर पथ पर बढ़ाते
बलिदानो की चाहत लेकर।

रोज परखता दुश्मन का दम ।
तीन रंग का अपना परचम ।।

गंगा की पावनता के संग ।
हिमगिर की हिमवान धवलता।
धवल धवल यह बिजली दौड़ी
हर सैनिक में बनी चपलता ।

दुनिया इसका करती अनुगम ।
तीन रंग का अपना परचम ।।

देश द्रोहिंयो को भी फाँसी पर लटकाना बाकी है।

पहरा बहुत कड़ा होता है
सीना तान खड़ा होता है
घर परिवार बहुत छोटा  है
सबसे देश बड़ा होता है
भगतसिंह के सपनो का हिंदुस्तान बनाना बाकी है। 
देश द्रोहिंयो को भी फाँसी पर लटकाना बाकी है। 
आजादी के परवाने थे
भारत माँ के दीवाने थे
घरवालो से अनजाने थे
वन्देमातरम के गाने थे
भारत माँ के उन बेटो का मान बढ़ाना बाकी है
देश द्रोहिंयों को भी फाँसी  पर लटकाना बाकी है 
गोली सीने  पर खाते थे
जय जय भारत माँ गाते थे
और देश के खातिर हँसकर
सूली पर तो चढ़ जाते थे
अभी शहीदों का वह एहसास चुकाना बाकी है
देश द्रोहिंयों को फाँसी पर लटकाना बाकी है 
                                                                     

                                         Author :-नीरज कुमार शुक्ला 

हास्य कवि द्वारा लिखा एक व्यंग्य :-

अक्ल बाटने लगे विधाता ,
         लंबी लगी कतारें  । 
सभी आदमी खड़े हुवे थे ,
         कही नहीं थी नारी। 

 सभी नारियाँ कहाँ रह गई ,
          था ये अचरज भारी । 
पता चला ब्यूटी पार्लर में ,
          पहुँच गई  थी सारी । 

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया ,
            एक एक पर भारी । 
बैठी थी कुछ इंतज़ार में ,
            कब आएगी बारी । 

उधर विधाता ने पुरुषो में ,
           अक्ल बाँट दी सारी । 
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर ,
          जब पहुँची सब नारी । 

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है ,
      नहीं अक्ल है अब बाकी।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
        नींद खुली ब्रम्हा की ।

Tuesday, January 24, 2017

ब्राम्हण

ब्राम्हण सेने प्रीति कर सुख ना सोयो कोय ,
बलि राजा हरिशचंद्र को गयो राज सब खोय ,
गयो राज सब खोय हरी गई सिया दुलारी ,
तीन लोक के नाथ लात उनहुन के मारी ,
कह गिरधर कविराय सुनो हे ए जगथम्मन ,
सौ सौ नेकी करौ बदी न छोड़ो वम्मन ।
                                     

                                                                              By :- जी. डी. सिंह

परिवर्तन चौक लखनऊ


बना परिवर्तन चौक, माया तोरे राज ,
लछिमन जी के पार्क का कीन्ह्यो हाय बरबाद  ,
कीन्ह्यो हाय बरबाद धन्य तेरि  माया काशी ,
कछुक मिलायो धूरि कछु का दीन्हो फाँसी,
कहते जी. डी. सिंह मिला है सुन्दर मौका ,
मिटा पुराने चिन्ह बना परिवर्तन चौका ।

                                                                        By :-  जी.डी. सिंह 

ऋषिमुनि

ऋषि मुनियन के देश मा भा नेतन का राज,
अबतौ भारत देश की प्रभुवर राख्यो लाज ,
प्रभुवर राख्यो लाज बोल गुंडन का बाला ,
जिधर बढ़ाओ हाथ पड़े रिसवत से पाला ,
कहते जी. डी. सिंह बात नेतन की सुनि गुनि ,
जाउ यहाँ से भागि रहन ना पइ हौ ऋषिमुनि ।

By :- जी. डी. सिंह

मनुष्य और सर्प

रामधारी सिंह "दिनकर "




चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग, फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग। वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग, बह रहा चतुष्पद और द्विपद का रुधिर मिश्र हो एक संग। गत्वर, गैरेय,सुघर भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर, थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर। दोनों रण-कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ, दोनों पर दोनों की अमोघ,
थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ। इतने में शर के लिए कर्ण ने, देखा ज्यों अपना निषंग, तरकस में से फुंकार उठा, कोई प्रचंड विषधर भुजंग। कहता कि कर्ण ! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ, जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।

Monday, January 23, 2017

माँ कह एक कहानी



Author-मैथिलीशरण गुप्त

माँ कह एक कहानी।
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी
कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी
माँ कह एक कहानी।

तू है हठी, मानधन मेरे,
सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे,
जहाँ सुरभि मनमानी।जहाँ सुरभि मनमानी!
हाँ माँ यही कहानी।

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे,
झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी।"लहराता था पानी,
हाँ हाँ यही कहानी।"

Sunday, January 22, 2017

अधिकारी

अधिकारिन  की बात का कैसे होय यकीन
ऊपर से मीठे दिखें भीतर से नमकीन
भीतर  ते नमकीन करें जो क्लर्क बतावैं
अनहोनी होइ जाए समय पर काम न  आवैं
कहते जी. डी. सिंह व्यर्थ जाए मेहनत सारी
उल्टा सीधा करै आज कल के अधिकारी ।       

By :- जी. डी. सिंह

ऑफिस के क्लर्क

चाहे जितना ही करौ प्यारे अपना वर्क
सब  के भाग्य विधाता है ऑफिस के क्लर्क
है ऑफिस के क्लर्क कहो वेतन कटवा दे
जो सच्ची कही देव तुरत सस्पेंड करादे
कहते जी. डी. सिंह कहा अब मेरा मानो
यह क्लर्क  है नहीं विधाता इनको जानो ।

By :- जी. डी. सिंह

Saturday, January 21, 2017

किसान

पछिलहरा हरु माचियावति है,
दुइ पहर जोति घर आवति हैं,
तव चारा पानी लावति हैं
नांदै भरि बैल खवावति हैं,
नहि मिलत समय पर पानी हैं,
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।    
                                                                          

मेहनत तौ आठौ याम करै
पल मरन कवौ विसराम करै
दिन रात बिचारे काम करै
तेहूँ पर रामहि राम करै
विधि की गति जाति न जानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

नित सहना द्वारे खड़े रहैं
हाँ जिलेदारहू अड़े रहैं
उई कहौ कहां लगि कटे रहैं
पट वारी देउता अड़े रहैं
यह पद्धति बहुत पुरानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।


चाहे होय जेठ की धुप कड़ी
सावन भादौं की मेह झड़ी
या माघ पूस की ठंड बड़ी
गोई उनकी है मची खड़ी
बैसुआ मा वाह लगानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

Friday, January 6, 2017

कुछ आज कल के लड़को के बारे में......


अबके लरिकन का सुनो बड़ा अनोखा  हाल,
जरा जरा सी बात पर हो जाते है लाल,
हो जाते है लाल तुरत पिस्तौल उठावें  ,
टीवी, सूरा, पुकार, लाटरी से नेह लगावै ,
कहते जी.डी. सिंह लगा लो मुँह में फरिका ,
नहीं तो जिंदम  गया  करेंगे अबके लड़िका ।
  

By :- जी. डी. सिंह