Tuesday, February 7, 2017

बुढ़ापा


पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है ।  

  
निंदा की नीव बुढ़ापा है,
जीवन संताप बुढ़ापा है,
संस्तृत का पाप बुढ़ापा है,
पुरिखन की आस बुढ़ापा है,
देखतै तन थर थर कापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

बचपन मा कनिया चढ्यो खूब
मनमानी बातें गड्यो खूब,
घी दूध खाये कै बढ्यो खूब,
खेल्यो कूद्यो औ चल्यो खूब,
अब सोचि रह्यो का पापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

बीते कछू दिवस जवान भयो,
विद्धान गुनी धनवान भयो,
बल पौरुख तेज निधान भयो,
सुन्दर स्वरूप रसवान भयो,
सब घुसरि गयो सुघराया है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 


जर्जर शरीर है बूत नहीं,
यद्यपि है उमर बहूत नहीं,
है हाथ पांव मजबूत नहीं,
उतरा सिर ते है भुत नहीं,
घेरे दुनिया की आपा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

जिनके कारन हित जरयो मरयो,
ऊधम की धरती धरति रह्यो,
दैवो ते ने कुन डरति रह्यो,
दिन राति जरति और मरति रह्यो,
उइ कहै की बुढवा भ्वांपा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

गाँढी होती है चुर्र -चुर्र,

घर्राय रहा गरु घुर्र -घुर्र,
खाँसी आवति है खुर्र -खुर्र,
बहि रही नाक है सुर्र -सुर्र,
सब घुसरि गयो सुघराया है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

आँखिन ते कछु न देखाय यार,
कानन ते कछु न सुनाय यार,
छिन -छिन जियरा अकुलाय यार,
बिन दाँतन मुँह पापुलय यार,
देखो कस मारिस छापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

आगे कहि कै को अयसु लहै,
कबहू न तनिक पवि चारि रहै,
हर साइत लीवर लार बहै,
जी. डी. सिंह साफै साफ कहै,
रखिस ना मूंदा झांपा  है,
`पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 


Author -गुनन्यदेव सिंह 



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