जाकी न धरती हरी ताहि न लीजै संग,
जो संग राखे ही बनै तौ करि राखु अपंग,
तौ करि राखु अपंग संग कबहूँ नहि लीजै,
सौ सौगंधै खाय चित्त मा याक न दीजै,
कह गिरधर कविराय खुटुक जइ है नहि ताकी,
कोटि दिलासा देय हरी घन धरती जाकी।
जो संग राखे ही बनै तौ करि राखु अपंग,
तौ करि राखु अपंग संग कबहूँ नहि लीजै,
सौ सौगंधै खाय चित्त मा याक न दीजै,
कह गिरधर कविराय खुटुक जइ है नहि ताकी,
कोटि दिलासा देय हरी घन धरती जाकी।
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