Saturday, January 21, 2017

किसान

पछिलहरा हरु माचियावति है,
दुइ पहर जोति घर आवति हैं,
तव चारा पानी लावति हैं
नांदै भरि बैल खवावति हैं,
नहि मिलत समय पर पानी हैं,
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।    
                                                                          

मेहनत तौ आठौ याम करै
पल मरन कवौ विसराम करै
दिन रात बिचारे काम करै
तेहूँ पर रामहि राम करै
विधि की गति जाति न जानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

नित सहना द्वारे खड़े रहैं
हाँ जिलेदारहू अड़े रहैं
उई कहौ कहां लगि कटे रहैं
पट वारी देउता अड़े रहैं
यह पद्धति बहुत पुरानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।


चाहे होय जेठ की धुप कड़ी
सावन भादौं की मेह झड़ी
या माघ पूस की ठंड बड़ी
गोई उनकी है मची खड़ी
बैसुआ मा वाह लगानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।


जोतति है अरु मयावति हैं
अरु खाद खूब बिथरावति हैं
डेड़ी  पर लइकै ब्वावति है
रक्तन के आँस बहावति हैं
सींचइ का मिलत न पानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

कवहूँ  तौ बहिया आवति हैं
कवहूँ  पाला परि जावत हैं
कवहूँ  सूखा परि जावत हैं
इहु दैवौ खूब सतावति हैं
तहि जात विपत्ति वखानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

कहुं कीरी गन्ना  खाय रही
कहुं टींड़ी उघम मचाय रही
गेहूवन पर गेरुई छाय रही
गंघी कहु गजव दहाय रही
सर कारौ कीन वसानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

कहुं  बंदर द्वन्द मचाय रहै
कहूं सूअर सियार सताय रहे
कहुं घूस मुस घतियाय रहे
उत्पतौ खूब मचाय रहे
सुनि सुनि कै मति चकरानी हैं
 को कहै कि सुगम किसानी है।

जब काटि वीनि घर लावति हैं
खलिहान मढ़ोय लगावति हैं
परती लै रासि ओसानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं।

ज्यो त्यौ कै रासि लगावति हैं
देवी देवता मनावति  हैं
अरु ऋण लगान भुगतावति हैं
बचा खुचा सो पावति हैं
वीतत ऐसन जिंदगानी  हैं ।
 को कहै कि सुगम किसानी हैं।

अब घर वालेन की कथा कहैं
लरिका वालेन की व्यथा कहैं
या काम काज की प्रथा कहैं
सपनेउ म तनकौ वृथा कहैं
देखति सव उमरि सेरानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं।

घुघटयहिया पानी भरै जाय
सव चौका  बरतन करै जाय
फिर पहिती क़्वादौ छरै जाय
खेतौ मा जाके मरै जाय
तन  कौ न कवो अरसानी हैं
 को कहै कि सुगम किसानी हैं

भोजन दोउ पहर बनावति है
सबका बैठारि जेंवावति है
फिर अपनो भोग लगावति है
भरि पेट न कवहू पावति है
नित सास त सास जेठानी है
 को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

अधि  रात क छुट्टी पावति है
मुनुवां का गरे लगावति है
फिर प्रियतम के ढ़िग अवति है
 कछु देर उन्हें विरममावति है
मिट्टी माँ मिली जवानी है
 को कहै कि सुगम किसानी है ।

बुढ़ई बुढ़वन का डरे सदा
कछु राति रहै उठि परे सदा
पीसै कुटै सबु छरै सदा
सब चीज उठावै धरै सदा
फिर पाले परी मथानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं

देवी का रूप बहुरिया है
सचमुच संतोष कि पुरिया है
गहना है असुरन गुरिया है
पहिरे  दुइ लाख कि चुरिया है
यह  इनकी राम कहानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं

घरु भरि  खेती का जोग करै
माँ बाप पुरवुले भोग करै
तब दूर मुख का रोग करै
आदर न तहूं पर लोग करै
कैसी नवीन नादानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं  ।

By :- जी. डी. सिंह

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