Thursday, January 26, 2017

हास्य कवि द्वारा लिखा एक व्यंग्य :-

अक्ल बाटने लगे विधाता ,
         लंबी लगी कतारें  । 
सभी आदमी खड़े हुवे थे ,
         कही नहीं थी नारी। 

 सभी नारियाँ कहाँ रह गई ,
          था ये अचरज भारी । 
पता चला ब्यूटी पार्लर में ,
          पहुँच गई  थी सारी । 

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया ,
            एक एक पर भारी । 
बैठी थी कुछ इंतज़ार में ,
            कब आएगी बारी । 

उधर विधाता ने पुरुषो में ,
           अक्ल बाँट दी सारी । 
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर ,
          जब पहुँची सब नारी । 

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है ,
      नहीं अक्ल है अब बाकी।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
        नींद खुली ब्रम्हा की ।



पूछा कैसा शोर हो रहा है ,
          ब्रम्हलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्लका ,
           पुरूष ले गए सारे ।

ब्रम्हा जी ने कहा देवियों ,
          बहुत देर कर दी है । 
जितनी भी थी अक्ल वो मैंने ,
          पुरुषो में भर दी  है । 

लगी चीखने महिलाएं ,
          ये कैसा न्याय तुम्हरा ?
कुछ भी करो हमें तो चाहिए ,
            आधा भाग हमारा । 

पुरुषो में शारीरिक बल है ,
          हम ठहरी अबलाएं । 
अक्ल हमारे लिए जरुरी ,
         निज रक्षा कर पाएं । 

सोचकर दाढ़ी सहलाकर ,
        तब बोले  ब्रम्हा जी । 
एक वरदान तुम्हें देता हूँ ,
        अब हो जाओ राजी । 

थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी ,
          रहे पुरुषो पर भरी । 
कितना भी वह अक्लमंद हो ,
           अक्ल जायेगी मारी ।  

एक औरत ने तर्क दिया ,
        मुश्किल बहुत होती है । 
हंसने से  ज्यादा महिलाएं ,
          जीवन भर रोती है । 

ब्रम्हा बोले यही कार्य तब,
         रोना भी कर देगा । 
औरत का रोना भी नर की ,
          अक्ल हर लेगा । 

एक अधेड़ बोली बाबा ,
      हंसना रोना नहीं आता । 
झगड़े में है सिद्धहस्त हम ,
         खूब झगड़ना भाता । 

ब्रम्हा बोले चलो मान ली ,
        यह भी बात तुम्हारी । 
झगडे के आगे भी नर की ,
         अक्ल जाएगी मारी । 

ब्रम्हा बोले सुनो ध्यान से ,
         अंतिम वचन हमारा । 
तीन शस्त्र  अब तुम्हे दिए ,
         पूरा न्याय हमारा । 

इन अचूक शस्त्रो में भी ,
         जो मानव नहीं फंसेगा।
निश्चित समझो उसका घर,
          फिर कभी नहीं बसेगा । 

कहे कवि मित्र ध्यान से ,
       सुन लो बात हमारी । 
बिना अक्ल के भी होती है ,
        नर पर नारी भारी ।    



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