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Author-मैथिलीशरण गुप्त |
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी
कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी
माँ कह एक कहानी।
तू है हठी, मानधन मेरे,
सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे,
जहाँ सुरभि मनमानी।जहाँ सुरभि मनमानी!
हाँ माँ यही कहानी।
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे,
झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी।"लहराता था पानी,
हाँ हाँ यही कहानी।"
गाते थे खग कल कल स्वर से,
सहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर से,
हुई पक्षी की हानी।हुई पक्षी की हानी?
करुणा भरी कहानी!
चौंक उन्होंने उसे उठाया,
नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया,
लक्ष सिद्धि का मानी।लक्ष सिद्धि का मानी!
कोमल कठिन कहानी।
माँगा उसने आहत पक्षी,
तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी,
हठ करने की ठानी।हठ करने की ठानी!
अब बढ़ चली कहानी।
हुआ विवाद सदय निर्दय में,
उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में,
सुनी सब ने जानी।सुनी सब ने जानी!
व्यापक हुई कहानी।
राहुल तू निर्णय कर इसका,
न्याय पक्ष लेता है किसका
कह दो निर्भय जय हो जिसका,
सुन लूँ तेरी वाणी
माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे,
तो क्यों न अन्य उसे उबारे,
रक्षक पर भक्षक को वारे,
न्याय दया का दानी।न्याय दया का दानी!
तूने गुणी कहानी।
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