रहिये लटपट काटि दिन अरु घामे मा सोय,
छांह नवाकी बैठिये जो तरु पतरो होय,
जो तरु पतरो होय एक दिन धोखा दइहै,
जा दिन चलै बयारि उलटि वह जर ते जइहै,
कह गिरधर कविराय छांह मोटे की गहिये,
पत्ता सब झारि जाय तबौ छाया मा रहिये।
छांह नवाकी बैठिये जो तरु पतरो होय,
जो तरु पतरो होय एक दिन धोखा दइहै,
जा दिन चलै बयारि उलटि वह जर ते जइहै,
कह गिरधर कविराय छांह मोटे की गहिये,
पत्ता सब झारि जाय तबौ छाया मा रहिये।
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