Saturday, January 28, 2017

पान मसाला

जो तुम्हरे लागै तलब हमका लह्यो पुकार,
हमते जो परहेज हो तो लेलो श्याम बहार,
लेलो श्याम बहार आपकी पावर लाना,
रजनी गंधा हरसिंगार अरु लीडर खाना,
कहते जी.डी सिंह चलौ राजा दरबारे,
है संजोगकि बात राज श्री साथ तुम्हरे ।

By :- जी. डी. सिंह

पानी के गुन

पानी मा गुन बहुत है बसै तुम्हरे अंग,
कहूं शांति है बैठि है कहूं दिखावै रंग,
कहूं दिखावै रंग कहीं पर पानी भरना,
कहीं पर जाये उतर कहीं पर पानी चढ़ना,
कहते जी. डी. सिंह इहै महिमा लासानी,
जो तुम इज्जत चाहौ आँखि मा राखो पानी ।


By :- जी. डी. सिंह

समय का महत्व

केतनी वर का होति है जान न पावा कोय,
सब जन यह कहतै फिरै होनी होय सो होय,
होनी होय सो होय कहबु यह सत्य तुम्हरा,
पर कर्तव्य क ध्यान रख्यो जो सब से न्यारा,
कहते जी.डी .सिंह काम मा रहेना चरफर,
न जानी यह मौत आइ जाये केतने वर।

By :- जी. डी. सिंह

कलयुग

भइया ई संसार माँ अपना सगा न कोय,
जिन पर तुम फूलति फिरौ दगा करै गे सोय,
दगा करेंगे सोय बाधि तुम का लइ जइ है,
देहिं आगि माँ फूकि रहम तनकौ ना लइ है,
कहते जी.डी.सिंह भजौ सब अम्बे मइया,
होइ जाव भव से पार बिना नइया के मइया ।  

By :- जी. डी. सिंह   

नीच की नीचता


नीच न छोड़ै नीचता केतनउ करौ उपाय,
दूध पिलाओ सांप का विष ही बढ़ता जाय,
विष ही बढ़ता जाय चले वह एकदम उल्टा,
जैसे घर का नासि करै वह नारी कुल्टा,
कहते जी. डी.  सिंह उधर से लेना आँखे मीच,
घर बाहर अरु राह माँ जो मिल जाय नीच।

By :- जी. डी. सिंह

  

नेता

कहलावै नेता वही मिथ्या करै प्रचार,
बदले रंग गिरगिट तरह दिन मा सौ-सौ बार,
दिन मा सौ-सौ बार आवादा सब से करते,
पड़ जाये यदि काम नहीं वह ढूढे मिलते,
कहते जी.डी.सिंह जौनु सब का भरमावे,
जेहिं मा ई गुन होय वहै  नेता कहलावे ।

By :- जी. डी. सिंह

मन की बात


अपने मन के दुख को कहूं न कहना रोय
सुनि कै खुश सब होइगे मदद न करि है कोय
मदद न करि है कोय हँसी सब तोरि उड़ै है
करि है महा  प्रचार जहाँ तक वह चलि जै है
कहते जी.डी.  सिंह व्यथा जो होवे तन की
सब बाधा कटि जाय कहयो तब अपने मन की

By :- जी. डी. सिंह

आरक्षण

पढ़ना लिखना चढ़ि गयो आरक्षण  की भेट,
लरिका सब बेकार में खली होइगै टेंट,
खली होइगै टेंट न कोई पूछन हारा,
भटके भटके फ़िरौ मिलै नहि कहू किनारा,
कहते जी. डी.  सिंह चूर में  सारे सपना,
भइया जोतो खेत व्यर्थ मा पड़ना लिखना ।

By :- जी. डी. सिंह

माता जी

माता  जी की कृपा से कटते कष्ट अनेक,
ऊँच नीच नहि मानती जिन का रास्ता नेक,
जिन का रास्ता नेक कभी वह नहि दुःख पावें,
कोई मुसीबत पड़े तासु से मातु बचावे,
कहते जी.डी.सिंह बात सबके हित  की,
बाल न बाका होय कृपा जिस पर माते की।

By :- जी. डी. सिंह

बक्शी का तालाब


बी ०के ०टी के ब्लाक मा कठवारा एक ग्राम,
मातु चंद्रिके का जहाँ सुन्दर धाम ललाम,
सुन्दर धाम ललाम आदि गंगाजल बहती,
माता जी की कृपा सदा सबके संग रहती
देखा जी.डी.सिंह ने  रैन बसेरा हाल,
कुण्ड सुघन्वा है जहाँ ऐसा बक्शीताल ।

By :- जी. डी. सिंह

     

पन्ना दाई

Author-सत्य नारायण गोयंक

चल पड़ा दुष्ट बनवीर क्रूर, जैसे कलयुग का कंस चला
राणा सांगा के, कुम्भा के, कुल को करने निर्वश चला

उस ओर महल में पन्ना के कानों में ऐसी भनक पड़ी
वह भीत मृगी सी सिहर उठी, क्या करे नहीं कुछ समझ पड़ी

तत्क्षण मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले घन पर
स्वामी के हित में बलि दूंगी, अपने प्राणों से भी बढ़ कर

धन्ना नाई की कुंडी में, झटपट राणा को सुला दिया
ऊपर झूठे पत्तल रख कर, यों छिपा महल से पार किया

फिर अपने नन्हें­मुन्ने को, झट गुदड़ी में से उठा लिया
राजसी वसन­भूषण पहना, फौरन पलंग पर लिटा दिया

इतने में ही सुन पड़ी गरज, है उदय कहां, युवराज कहां
शोणित प्यासी तलवार लिये, देखा कातिल था खड़ा वहां

पन्ना सहमी, दिल झिझक उठा, फिर मन को कर पत्थर कठोर
सोया प्राणों­का­प्राण जहां, दिखला दी उंगली उसी ओर

हम को मन की शक्ति देना



हम को मन की शक्ति देना,  
मन विजय करें,
दूसरों की जय से पहले,
खुद की जय करें,
हम को मन की शक्ति देना ...

भेद भाव अपने दिल से,
साफ़ कर सकें, 
दूसरों से भूल हो तो, 
माफ़ कर सकें, 
झूठ से बचे रहें, 
सच का दम भरें, 

Author:- गुलज़ार 

दूसरों की जय से पहले, 
खुद की जय करें 
हम को मन की शक्ति देना ... 

मुश्किलें पड़ें तो हम पे,
 इतना कर्म कर, 
साथ दें तो धर्म का, 
चलें तो धर्म पर
खुद पे हौसला रहे, 
सचका दम भरें, 
दूसरों की जय से पहले, 
खुद की जय करें, 
 हम को मन की शक्ति देना ... 


Thursday, January 26, 2017

तिरंगा

भारत की संस्कृति का संगम ।
तीन रंग  का अपना परचम ।

केसरिया कश्मीर की घाटी
की सोंधी सी रंगत लेकर ।
वीर बहादुर पथ पर बढ़ाते
बलिदानो की चाहत लेकर।

रोज परखता दुश्मन का दम ।
तीन रंग का अपना परचम ।।

गंगा की पावनता के संग ।
हिमगिर की हिमवान धवलता।
धवल धवल यह बिजली दौड़ी
हर सैनिक में बनी चपलता ।

दुनिया इसका करती अनुगम ।
तीन रंग का अपना परचम ।।

देश द्रोहिंयो को भी फाँसी पर लटकाना बाकी है।

पहरा बहुत कड़ा होता है
सीना तान खड़ा होता है
घर परिवार बहुत छोटा  है
सबसे देश बड़ा होता है
भगतसिंह के सपनो का हिंदुस्तान बनाना बाकी है। 
देश द्रोहिंयो को भी फाँसी पर लटकाना बाकी है। 
आजादी के परवाने थे
भारत माँ के दीवाने थे
घरवालो से अनजाने थे
वन्देमातरम के गाने थे
भारत माँ के उन बेटो का मान बढ़ाना बाकी है
देश द्रोहिंयों को भी फाँसी  पर लटकाना बाकी है 
गोली सीने  पर खाते थे
जय जय भारत माँ गाते थे
और देश के खातिर हँसकर
सूली पर तो चढ़ जाते थे
अभी शहीदों का वह एहसास चुकाना बाकी है
देश द्रोहिंयों को फाँसी पर लटकाना बाकी है 
                                                                     

                                         Author :-नीरज कुमार शुक्ला 

हास्य कवि द्वारा लिखा एक व्यंग्य :-

अक्ल बाटने लगे विधाता ,
         लंबी लगी कतारें  । 
सभी आदमी खड़े हुवे थे ,
         कही नहीं थी नारी। 

 सभी नारियाँ कहाँ रह गई ,
          था ये अचरज भारी । 
पता चला ब्यूटी पार्लर में ,
          पहुँच गई  थी सारी । 

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया ,
            एक एक पर भारी । 
बैठी थी कुछ इंतज़ार में ,
            कब आएगी बारी । 

उधर विधाता ने पुरुषो में ,
           अक्ल बाँट दी सारी । 
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर ,
          जब पहुँची सब नारी । 

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है ,
      नहीं अक्ल है अब बाकी।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
        नींद खुली ब्रम्हा की ।

Tuesday, January 24, 2017

ब्राम्हण

ब्राम्हण सेने प्रीति कर सुख ना सोयो कोय ,
बलि राजा हरिशचंद्र को गयो राज सब खोय ,
गयो राज सब खोय हरी गई सिया दुलारी ,
तीन लोक के नाथ लात उनहुन के मारी ,
कह गिरधर कविराय सुनो हे ए जगथम्मन ,
सौ सौ नेकी करौ बदी न छोड़ो वम्मन ।
                                     

                                                                              By :- जी. डी. सिंह

परिवर्तन चौक लखनऊ


बना परिवर्तन चौक, माया तोरे राज ,
लछिमन जी के पार्क का कीन्ह्यो हाय बरबाद  ,
कीन्ह्यो हाय बरबाद धन्य तेरि  माया काशी ,
कछुक मिलायो धूरि कछु का दीन्हो फाँसी,
कहते जी. डी. सिंह मिला है सुन्दर मौका ,
मिटा पुराने चिन्ह बना परिवर्तन चौका ।

                                                                        By :-  जी.डी. सिंह 

ऋषिमुनि

ऋषि मुनियन के देश मा भा नेतन का राज,
अबतौ भारत देश की प्रभुवर राख्यो लाज ,
प्रभुवर राख्यो लाज बोल गुंडन का बाला ,
जिधर बढ़ाओ हाथ पड़े रिसवत से पाला ,
कहते जी. डी. सिंह बात नेतन की सुनि गुनि ,
जाउ यहाँ से भागि रहन ना पइ हौ ऋषिमुनि ।

By :- जी. डी. सिंह

मनुष्य और सर्प

रामधारी सिंह "दिनकर "




चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग, फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग। वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग, बह रहा चतुष्पद और द्विपद का रुधिर मिश्र हो एक संग। गत्वर, गैरेय,सुघर भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर, थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर। दोनों रण-कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ, दोनों पर दोनों की अमोघ,
थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ। इतने में शर के लिए कर्ण ने, देखा ज्यों अपना निषंग, तरकस में से फुंकार उठा, कोई प्रचंड विषधर भुजंग। कहता कि कर्ण ! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ, जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।

Monday, January 23, 2017

माँ कह एक कहानी



Author-मैथिलीशरण गुप्त

माँ कह एक कहानी।
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी
कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी
माँ कह एक कहानी।

तू है हठी, मानधन मेरे,
सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे,
जहाँ सुरभि मनमानी।जहाँ सुरभि मनमानी!
हाँ माँ यही कहानी।

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे,
झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे,
लहराता था पानी।"लहराता था पानी,
हाँ हाँ यही कहानी।"

Sunday, January 22, 2017

अधिकारी

अधिकारिन  की बात का कैसे होय यकीन
ऊपर से मीठे दिखें भीतर से नमकीन
भीतर  ते नमकीन करें जो क्लर्क बतावैं
अनहोनी होइ जाए समय पर काम न  आवैं
कहते जी. डी. सिंह व्यर्थ जाए मेहनत सारी
उल्टा सीधा करै आज कल के अधिकारी ।       

By :- जी. डी. सिंह

ऑफिस के क्लर्क

चाहे जितना ही करौ प्यारे अपना वर्क
सब  के भाग्य विधाता है ऑफिस के क्लर्क
है ऑफिस के क्लर्क कहो वेतन कटवा दे
जो सच्ची कही देव तुरत सस्पेंड करादे
कहते जी. डी. सिंह कहा अब मेरा मानो
यह क्लर्क  है नहीं विधाता इनको जानो ।

By :- जी. डी. सिंह

Saturday, January 21, 2017

किसान

पछिलहरा हरु माचियावति है,
दुइ पहर जोति घर आवति हैं,
तव चारा पानी लावति हैं
नांदै भरि बैल खवावति हैं,
नहि मिलत समय पर पानी हैं,
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।    
                                                                          

मेहनत तौ आठौ याम करै
पल मरन कवौ विसराम करै
दिन रात बिचारे काम करै
तेहूँ पर रामहि राम करै
विधि की गति जाति न जानी हैं
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

नित सहना द्वारे खड़े रहैं
हाँ जिलेदारहू अड़े रहैं
उई कहौ कहां लगि कटे रहैं
पट वारी देउता अड़े रहैं
यह पद्धति बहुत पुरानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।


चाहे होय जेठ की धुप कड़ी
सावन भादौं की मेह झड़ी
या माघ पूस की ठंड बड़ी
गोई उनकी है मची खड़ी
बैसुआ मा वाह लगानी है
को कहै कि सुगम किसानी हैं ।

Friday, January 6, 2017

कुछ आज कल के लड़को के बारे में......


अबके लरिकन का सुनो बड़ा अनोखा  हाल,
जरा जरा सी बात पर हो जाते है लाल,
हो जाते है लाल तुरत पिस्तौल उठावें  ,
टीवी, सूरा, पुकार, लाटरी से नेह लगावै ,
कहते जी.डी. सिंह लगा लो मुँह में फरिका ,
नहीं तो जिंदम  गया  करेंगे अबके लड़िका ।
  

By :- जी. डी. सिंह