Tuesday, February 7, 2017

बुढ़ापा


पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है ।  

  
निंदा की नीव बुढ़ापा है,
जीवन संताप बुढ़ापा है,
संस्तृत का पाप बुढ़ापा है,
पुरिखन की आस बुढ़ापा है,
देखतै तन थर थर कापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

बचपन मा कनिया चढ्यो खूब
मनमानी बातें गड्यो खूब,
घी दूध खाये कै बढ्यो खूब,
खेल्यो कूद्यो औ चल्यो खूब,
अब सोचि रह्यो का पापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

बीते कछू दिवस जवान भयो,
विद्धान गुनी धनवान भयो,
बल पौरुख तेज निधान भयो,
सुन्दर स्वरूप रसवान भयो,
सब घुसरि गयो सुघराया है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है। 

Monday, February 6, 2017

ऑंसू


Author-जयशंकर प्रसाद

इस करुणा कलित हृदय में
अब विकल रागिनी बजती
क्यों हाहाकार स्वरों में
वेदना असीम गरजती?

मानस सागर के तट पर
क्यों लोल लहर की घातें
कल कल ध्वनि से हैं कहती
कुछ विस्मृत बीती बातें?

आती हैं शून्य क्षितिज से
क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी
टकराती बिलखाती-सी
पगली-सी देती फेरी?

क्यों व्यथित व्योम गंगा-सी
छिटका कर दोनों छोरें
चेतना तरंगिनी मेरी
लेती हैं मृदल हिलोरें?

बस गयी एक बस्ती हैं
स्मृतियों की इसी हृदय में
नक्षत्र लोक फैला है
जैसे इस नील निलय में।

ये सब स्फुलिंग हैं मेरी
इस ज्वालामयी जलन के
कुछ शेष चिह्न हैं केवल
मेरे उस महा मिलन के।

शीतल ज्वाला जलती हैं
ईधन होता दृग जल का
यह व्यर्थ साँस चल-चल कर
करती हैं काम अनिल का।

बाड़व ज्वाला सोती थी
इस प्रणय सिन्धु के तल में
प्यासी मछली-सी आँखें
थी विकल रूप के जल में।




बुलबुले सिन्धु के फूटे
नक्षत्र मालिका टूटी
नभ मुक्त कुन्तला धरणी
दिखलाई देती लूटी।

छिल-छिल कर छाले फोड़े
मल-मल कर मृदुल चरण से
धुल-धुल कर बह रह जाते
आँसू करुणा के कण से।

इस विकल वेदना को ले
किसने सुख को ललकारा
वह एक अबोध अकिंचन
बेसुध चैतन्य हमारा।

अभिलाषाओं की करवट
फिर सुप्त व्यथा का जगना
सुख का सपना हो जाना
भींगी पलकों का लगना।

इस हृदय कमल का घिरना
अलि अलकों की उलझन में
आँसू मरन्द का गिरना
मिलना निश्वास पवन में।

Sunday, February 5, 2017

लाठी के गुण

लाठी में हैं गुण बहुत, सदा राखिये संग,
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग,
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे,
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै,
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी,
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।

By :- गिरिधर कविराय

अनपढ़ मंत्री

कैसे कोई कहि सकै बड़े- बड़ेन की भूल,
संसद माँ उई पहुँचिगे जी न गये स्कूल,
जी न गये स्कूल तबो  बनि  बैढ़े मंत्री,
मिलि गयी उनको कार साथ मा दुई -दुई संत्री,
कहते जी. डी. सिंह देश मा अब का होई,
बड़े -बड़ेन की बात कहये अब  कैसे कोई।

By :- जी. डी. सिंह

धैर्य

तुम उतना आगे बढ़ो जितनी शक्ती होय,
बहकावे मा आइ कै दिह्यो न धीरज खोय,
दिह्यो न धीरज खोय चाल तुम अपनी चलना,
किह्यो सदा उपकार पैर पीछे नहि धरना,
कहते जी.डी.सिंह खर्च हो चाहे जितना,
मन मा लीन्हो ठानि काम तुम कीन्हो उतना।

By :- जी. डी. सिंह

बुरे की संगत

जाकी न धरती हरी ताहि न लीजै संग,
जो संग राखे ही बनै तौ करि राखु अपंग,
तौ करि राखु अपंग संग कबहूँ नहि लीजै,
सौ सौगंधै खाय चित्त मा याक न दीजै,
कह गिरधर कविराय खुटुक जइ है नहि ताकी,
कोटि दिलासा देय हरी घन धरती जाकी।

By :- गिरधर कविराय

सच्चे और बुरे की परख

रहिये लटपट काटि दिन अरु घामे मा सोय,
छांह नवाकी बैठिये जो तरु पतरो  होय,
जो तरु पतरो होय  एक दिन धोखा दइहै,
जा दिन चलै बयारि उलटि वह जर ते जइहै,
कह गिरधर कविराय छांह मोटे की गहिये,
पत्ता सब झारि जाय तबौ छाया मा रहिये।

By :- गिरधर कविराय



                                                            

Friday, February 3, 2017

गुटका

वाह चौधरी वार्डर हंटर पान पराग,
केसर मधु कुमार अरु शपथ संग दिलबाग,
शपथ संग दिलबाग वर्ड कप लेहु निहारी,
सरमावा डाइमंड सचिन से जो रूचि कारी,
कहते जी. डी.सिंह हरि ओइम अरु बोले शहंशाह,
तुलसी गुटका लखत ही मुख सेनि निकला वाह।

By :- जी. डी. सिंह


विजय दशमी

कहलायो जन मातु ने गमन कीन वन राम,
सिया हरण कइ लइ गयो रावण अपने धाम,
रावण अपने धाम पाई  सुधि कीन चढ़ाई,
मच्यो घोर संग्राम लंक मा धूरि उड़ाई,
कहते जी. डी.सिंह मारि जब रावण पायो,
क्वार मास शुभ दिवश विजय दशमी कहलायो।


By :- जी. डी. सिंह

मधुर वचन

मधुर वचन तुम बोलि कै सब का लेहु रिझाय,
कटुक वचन ते आपकी इज्जत जाय न साय,
इज्जत जाय न साय वचन कडुवे मत कहना,
सब से राखो प्रेम साथ सब ही की रहना,
कहते जी. डी.सिंह बात सब पूरी करना,
भरौ  दलित को अंक बोलि कै मधुरे वचना।

By :- जी. डी. सिंह

बेटियों का ब्याह

बाबूजी है दइ रहे सब का याक सलाह,
बीस बरस के बाद ही बिटिया क करना ब्याह,
बिटिया करना ब्याह तभी वह सुख से रहि है,
रहै सभी दुःख दूरि काम सब सुन्दर होइ है,
कहते जी. डी.सिंह देह पर रखना काबू,
मानो  इनकी बात बतावें जैसी बाबु।

By :- जी. डी. सिंह

  

दिनचर्या


घर बाहर का साफ कै ताजा जलु भरि लाव,
हाथ धोय मुँह साफ कै तव तुम जाय नहाव,
तव तुम जाय नहाव बदन मा फुर्ती लाओ,
दूध दही के साथ हरी सब्जी भी  खाओ,
कहते जी.डी.सिंह काम सब करना मिल कर,
चाहे घर मा रहौ चाहे रहौ घर के बाहर।
 

By :- जी. डी. सिंह

छोटे लरिका

छोटे लरिकन के सुनो टीका लेहु लगवाय,
पर्स पोलियो आदि का सब खतरा मिटि जाय,
सब खतरा मिटि जाय नमक आयोडीन खाओ,
गर्भवती महिलन की जाकर जाँच कराओ,
कहते जी. डी.सिह पड़ै चाहे जितनी अरचन,
रह्यो सदा तैयार ध्यान रखो छोटे लरिकन।

By :- जी. डी. सिंह



राजनीतिक कुर्सी का लालच


हमका कुर्सी चाहिए ऊँचि होय चाहे नीचि,
जउनी विधि ते यह मिलै लावहु वहि का खीचि,
लावहु वहि का खीचि बैठी हम वहि पर पाई,
जउन मिलै अनुदान चाटि हम वहि का जाई,
कहते जी. डी.सिंह मोर मन तबहें हुलसी,
जनता भार मा जाय चाहिए हम का कुर्सी।

By :- जी. डी. सिंह

ग्राम प्रधान


परधानी के  मिलत ही पहिल कामु हम कीन,
कोटा शक्कर तेल का भेजि टड़ैचै दीन,
भेजि टड़ैचै दीन बादि मा महल बनायेन,
लीन्हेन भूमि खरीद अउर ट्रैक्टर लइ आयन,
कहते जी. डी. सिंह कीन्ह कसिकै मनमानी,
हस्ती लीन बनाय मिली जब से परधानी।

By :- जी. डी. सिंह

कलयुग की नवदुर्गा

नवदुर्गा पैदा भई कलजुग के दरम्यान,
ललिता-माया-रावड़ी- ममता-उमा-बखान,
ममता उमा बखान साथ मा शीला-सोनिया,
फूलन अउर स्वराज जानि गइ जिन को दुनिया,
कहते जी.डी.सिंह चाहिए इनको मुरगा,
कलयुग माँ भइ प्रकट हाय ऐसी नवदुर्गा ।

By :- जी. डी. सिंह

    

नेताओं का राज

कुरता पैजामा पहिर बनिगे नेता आज,
दूसरेन की सम्पत्ति पर झपटै जैसे बाज,
झपटै जैसे बाज नोचि नंगा कइ डारै,
वहिका डारै चूसि साथ मा शेखी झारै,
कहते जी.डी.सिंह गाँठि मा एकु न दामा,
लेकिन उनका झलकि रहा कुरता पैजामा ।

By :- जी. डी. सिंह