पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है ।
जीवन संताप बुढ़ापा है,
संस्तृत का पाप बुढ़ापा है,
पुरिखन की आस बुढ़ापा है,
देखतै तन थर थर कापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है।
बचपन मा कनिया चढ्यो खूब
मनमानी बातें गड्यो खूब,
घी दूध खाये कै बढ्यो खूब,
खेल्यो कूद्यो औ चल्यो खूब,
अब सोचि रह्यो का पापा है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है।
बीते कछू दिवस जवान भयो,
विद्धान गुनी धनवान भयो,
बल पौरुख तेज निधान भयो,
सुन्दर स्वरूप रसवान भयो,
सब घुसरि गयो सुघराया है,
पनु सबते गाढ़ बुढ़ापा है।